गीता 14:18: Difference between revisions

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Revision as of 05:51, 14 June 2011

गीता अध्याय-14 श्लोक-18 / Gita Chapter-14 Verse-18

प्रसंग-


सत्वादि तीनों गुणों के कार्य ज्ञान आदि का वर्णन करके अब सत्त्वगुण में स्थिति कराने और रज तथा तमोगुण का त्याग कराने के लिये तीनों गुणों में स्थित पुरुषों की भिन्न-भिन्न गतियों का प्रतिपादन करते हैं-


ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसा: ।
जघन्यगुणवृत्तिस्थाअधो गच्छन्ति तामसा: ।।18।।



सत्त्वगुण में स्थित पुरुष स्वर्गादि उच्च लोकों को जाते हैं, रजोगुण में स्थित राजस पुरुष मध्य में अर्थात् मनुष्यलोक में ही रहते हैं और तमोगुण के कार्यरूप निद्रा, प्रमाद और आलस्यादि में स्थित तामस पुरुष अधोगति को अर्थात् कीट, पशु आदि नीच योनियों को तथा नरकों को प्राप्त होते हैं ।।18।।

Those who abide in the quality of Sattva wend their way upwards; while those of a Rajasika disposition stay in the middle. And those of a Tamasika temperament, enveloped as they are in the effects of Tamoguna sink down. (18)


सत्त्वस्था: = सत्त्वगुण में स्थित हुए पुरुष ; ऊर्ध्वम् = स्वर्गादि उच्च लोकों को ; गच्छन्ति = जाते हैं (और) ; राजसा: = स्थित राजस पुरुष ; मध्ये = मध्यमें अर्थात् मनष्यलोकमें ही ; तिष्ठान्ति = रहते हैं (एवं) ; जघन्यगुणवृत्तिस्था: = तमोगुण के कार्यरूप और आलस्यादि में स्थित हुए ; तामसा: = तामस पुरुष ; अध: = अधोगति को अर्थात् कीट पशु आदि नीच योनियों को ; गच्छन्ति = प्राप्त होते हैं



अध्याय चौदह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-14

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)