गीता 2:11: Difference between revisions
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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भगवान आत्मा की नित्यता का प्रतिपादन करके आत्मदृष्टि से उनके लिये शोक करना अनुचित सिद्ध करते हैं- | |||
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'''श्रीभगवान् बोले''' | '''श्रीभगवान् बोले''' | ||
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हे [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ! तू न शोक करने योग्य मनुष्यों के लिये शोक करता है और | हे [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ! तू न शोक करने योग्य मनुष्यों के लिये शोक करता है और पण्डितों के से वचनों को कहता है, परंतु जिनके प्राण चले गये हैं, उनके लिये और जिनके प्राण नहीं गये हैं, उनके लिये भी पण्डितजन शोक नहीं करते ।।11।। | ||
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त्वम् = तूं ; अशोच्यान् = न शोक करने | त्वम् = तूं ; अशोच्यान् = न शोक करने योग्यों के लिये ; अन्वशोच: = शोक करता है ; च = और ; प्रज्ञावादान् = पण्डितों के (से) वचनों को ; भाषसे = कहता है (परन्तु) ; पण्डिता: = पण्डितजन ; गतासून् = जिनके प्राण चले गये हैं उनके लिये ; च = और ; अगतासून् = जिनके प्राण नहीं गये हैं उनके लिये (भी) ; न = नहीं ; अनुशोचन्ति = शोक करते हैं ; | ||
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Latest revision as of 15:57, 13 May 2017
गीता अध्याय-2 श्लोक-11 / Gita Chapter-2 Verse-11
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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