गीता 18:1: Difference between revisions
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'''अष्टादशोऽध्याय प्रसंग-''' | '''अष्टादशोऽध्याय प्रसंग-''' | ||
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जन्म-मरण रूप संसार के बंधन से सदा के लिये छूटकर परमानन्द स्वरूप परमात्मा को प्राप्त कर लेने का नाम मोक्ष है; इस अध्याय में पूर्वोक्त समस्त अध्यायों का सार संग्रह करके मोक्ष के उपायभूत सांख्ययोग का | जन्म-मरण रूप संसार के बंधन से सदा के लिये छूटकर परमानन्द स्वरूप परमात्मा को प्राप्त कर लेने का नाम मोक्ष है; इस अध्याय में पूर्वोक्त समस्त अध्यायों का सार संग्रह करके मोक्ष के उपायभूत सांख्ययोग का सन्न्यास के नाम से और कर्मयोग का त्याग के नाम से अंग-प्रत्यंगों सहित वर्णन किया गया है, इसीलिये तथा साक्षात् मोक्षरूप परमेश्वर में सर्व कर्मों का सन्न्यास यानी त्याग करने के लिये कहकर उपदेश का उपसंहार किया गया है, इसलिये भी इस अध्याय का नाम 'मोक्षसन्न्यासयोग' रखा गया है । | ||
'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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[[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> इस अठारहवें अध्याय में समस्त अध्यायों के उपदेश का सार जानने के उद्देश्य से भगवान् के सामने | [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> इस अठारहवें अध्याय में समस्त अध्यायों के उपदेश का सार जानने के उद्देश्य से भगवान् के सामने सन्न्यास यानी ज्ञान योग का और त्याग यानी फलासक्ति के त्याग रूप कर्मयोग का तत्त्व भली-भाँति अलग-अलग जानने की इच्छा प्रकट करते हैं- | ||
'''अर्जुन उवाच-''' | '''अर्जुन उवाच-''' | ||
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''' | '''सन्न्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम् ।'''<br /> | ||
'''त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन ।।1।।''' | '''त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन ।।1।।''' | ||
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'''अर्जुन बोले-''' | '''अर्जुन बोले-''' | ||
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हे महाबाहो ! हे अन्तर्यामिन् ! हे वासुदेव<ref>मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, महाबाहो, अन्तर्यामिन्, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् [[कृष्ण]] का ही सम्बोधन है।</ref> ! मैं | हे महाबाहो ! हे अन्तर्यामिन् ! हे वासुदेव<ref>मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, महाबाहो, अन्तर्यामिन्, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् [[कृष्ण]] का ही सम्बोधन है।</ref> ! मैं सन्न्यास और त्याग के तत्त्व को पृथक्-पृथक् जानना चाहता हूँ ।।1।। | ||
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महाबाहो = हे महाबाहो ; हृषीकेश = हे अन्तर्यामिन् = केशिनिषूदन = हे वासुदेव (मैं) ; | महाबाहो = हे महाबाहो ; हृषीकेश = हे अन्तर्यामिन् = केशिनिषूदन = हे वासुदेव (मैं) ; सन्न्यासस्य = सन्न्यास ; च = और ; त्यागस्त्र = त्याग के ; तत्त्वम् = तत्त्व को ; पृथक् = पृथक् पृथक् ; वेदितुम् = जानना ; इच्छामि = चाहता हूं ; | ||
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Latest revision as of 13:53, 2 May 2015
गीता अध्याय-18 श्लोक-1 / Gita Chapter-18 Verse-1
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख |
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