गीता 16:7: Difference between revisions

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इस प्रकार आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य समुदाय के लक्षण सुनने के लिये <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
इस प्रकार आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य समुदाय के लक्षण सुनने के लिये <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला वो ही था।
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Revision as of 07:48, 20 February 2011

गीता अध्याय-16 श्लोक-7 / Gita Chapter-16 Verse-7

प्रसंग-


इस प्रकार आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य समुदाय के लक्षण सुनने के लिये <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> को सावधान करके अब भगवान् उनका वर्णन करते हैं-


प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुरा: ।

न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते ।।7।।


आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य प्रवृत्ति और निवृत्ति इन दोनों को ही नहीं जानते । इसलिये उनमें न तो बाहर-भीतर की शुद्धि है, न श्रेष्ठ आचरण है और न ही सत्य भाषण है ।।7।।

Men possessing a demoniac disposition know not what is right activity and what is right abstinence from activity. Hence they possess neither purity (external or internal) nor good conduct nor even truthfulness.(7)


आसुरा: = आसुरी स्वभाव वाले ; जना: = मनुष्य ; प्रवृत्तिम् = कर्तव्यकार्य में प्रवृत्त होने की ; च = और ; निवृत्तिम् = अकर्तव्यकार्य से निवृत्त होने को ; च = भी ; न = नहीं ; विदु: = जानते हैं (इसलिये) ; तेषु = उनमें ; न = न (तो) ; शौचम् = बाहर भीतर की शुद्धि है ; न = न ; आचार: = श्रेष्ठ आचरण है ; च = और ; न = न ; सत्यम् = सत्य भाषण ; अपि = ही ; विद्यते = है ;



अध्याय सोलह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-16

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15, 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)