गीता 18:19: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
m (Text replace - "<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>" to "<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "तत्व " to "तत्त्व ") |
||
Line 9: | Line 9: | ||
'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
---- | ---- | ||
इस प्रकार सांख्ययोग के सिद्धान्त से कर्म-चोदना (कर्म-प्रेरणा) और कर्म-संग्रह का निरूपण करके अब | इस प्रकार सांख्ययोग के सिद्धान्त से कर्म-चोदना (कर्म-प्रेरणा) और कर्म-संग्रह का निरूपण करके अब तत्त्व ज्ञान में सहायक सात्त्विक भाव को ग्रहण कराने के लिये और उसके विरोधी राजस, तामस भावों का त्याग कराने के लिये उपर्युक्त कर्म प्रेरणा और कर्म-संग्रह के नाम से बतलाये हुए ज्ञान आदि में से ज्ञान, कर्म और कर्ता के सात्त्विक, राजस और तामस- इस प्रकार त्रिविध भेद क्रम से बतलाने की प्रस्तावना करते हैं- | ||
---- | ---- | ||
<div align="center"> | <div align="center"> |
Revision as of 06:57, 17 January 2011
गीता अध्याय-18 श्लोक-19 / Gita Chapter-18 Verse-19
|
||||
|
||||
|
||||
|
||||