द्रौपदी का अपमान: Difference between revisions
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धर्मराज युधिष्ठिर के द्यूतक्रीड़ा में अपना सम्पूर्ण राज्य सोना,चाँदी, घोड़े रथ तथा अपने चारों भाइयों को हारने के बाद कुछ नही बचा था। उन्होनें अपनी पत्नि को भी दांव पर लगा दिया और उसे राज्य सभा में बुलवाया।
- कौरवों की खुशी
युधिष्ठिर के सबकुछ हार जाने के बाद कौरवों की खुशी का ठिकाना न रहा। दुर्योधन के कहने पर दुःशासन द्रौपदी को बाल से पकड़कर घसीटता हुआ सभा-भवन में ले आया दुर्योधन ने कहा कि द्रौपदी अब हमारी दासी है। दुर्योधन के कहने पर दुःशासन द्रौपदी के वस्त्र उतारने लगा।
- द्रौपदी की रक्षा
जब दुःशासन द्रौपदी के वस्त्र उतारने लगा तब द्रौपदी को संकट की घड़ी में कृष्ण की याद आई, उसने कृष्ण से अपनी लाज बचाने की प्रार्थना की, तभी सभा में एक चमत्कार हुआ। दुःशासन जैसे-जैसे द्रौपदी का वस्त्र खींचता जाता वैसे-वैसे वस्त्र भी बढ़ता जाता। वस्त्र खींचते-खींचते दुःशासन थककर बैठ गया।
- भीम की प्रतिज्ञा
भीम द्रौपदी का अपमान न सह सका। उसने प्रतिज्ञा की कि दुःशासन ने जिन हाथों से द्रौपदी के बाल खीचें हैं, मैं उन्हें युद्ध में उखाड़ फेंकूँगा। दुर्योधन अपनी जाँघ पर थपकियाँ देकर द्रौपदी को उस पर बैठने का इशारा करने लगा। भीम ने दुर्योधन की जाँघ तोड़ने की भी प्रतिज्ञा की। भीम ने प्रतिज्ञा की कि जब तक दुःशासन की छाती चीरकर उसके गरम खून से अपनी प्यास नहीं बुझाऊँगा तब तक इस संसार को छोड़कर पितृलोक नहीं जाऊँगा। अंधे धृतराष्ट्र बैठे-बैठे सोच रहे थे कि जो कुछ हुआ वह उनके कुल के संहार का कारण बनेगा। उन्होंने द्रौपदी को बुलाकर सांत्वना दी। युधिष्ठिर से दुर्योधन की धृष्टता को भूल जाने को कहा तथा उनका सब कुछ वापस कर दिया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 147 |
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