गांडीव धनुष: Difference between revisions
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Revision as of 08:56, 21 March 2011
- वज्र की गांठ को गांडी कहा गया है। उससे बना धनुष 'गांडीव' कहलाया। अन्य अनेक अक्षय शस्त्रों की भांति अपनी शक्ति के वर्धन के लिए दैत्यों ने इसका भी निर्माण किया था किंतु देवताओं ने उन्हें परास्त कर अक्षय शस्त्रों को प्राप्त कर लिया।
- अर्जुन को गांडीव धनुष अत्यधिक प्रिय था। उसने प्रतिज्ञा की थी कि जो व्यक्ति उसे गांडीव किसी और को देने के लिए कहेगा, उसे वह मार डालेगा। युद्ध में एक बार कर्ण ने युधिष्ठिर को परास्त कर दिया। युधिष्ठिर को मैदान छोड़कर भागना पड़ा। अर्जुन को जब युधिष्ठिर नहीं दीखे तो उनको देखने के लिए वह शिविर में गया। युधिष्ठिर घायल, दुखी, क्रुद्ध हो कर्ण पर खीजे हुए थे। अत: उन्होंने अर्जुन को लानत दी कि वह अब तक भी कर्ण को नहीं मार पाया। यह भी कहा कि वह गांडीव धनुष किसी और को दे दे।
- प्रतिज्ञानुसार अर्जुन ने तलवार निकाल ली किंतु कृष्ण ने अर्जुन की मन:स्थिति समझाकर उसे शांत किया और कहा कि बड़े व्यक्ति का अपमान कर देना ही उसके वध के समान है अत: अर्जुन ने युधिष्ठिर को अपमानसूचक बातें कहकर उसे मृतवत मानकर अपनी प्रतिज्ञा का निर्वाह किया- फिर क्षमा-याचना कर बड़े भाई को प्रणाम करके वह युद्ध करने चला गया। [1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत, खांडववन, उद्योगपर्व, अध्याय 98, श्लोक 19 से 22 तक, कर्णपर्व, 69-71
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