अक्षौहिणी: Difference between revisions
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*शतरंज के हाथी को 'रूख' कहते हैं जबकि यूनानी इसे 'युद्ध-रथ' कहते हैं। इसका आविष्कार एथेंस में 'मनकालुस'(मिर्तिलोस) ने किया था और एथेंसवासियों का कहना है कि सबसे पहले युद्ध के रथों पर वे ही सवार हुए थे। लेकिन उस समय के पहले उनका आविष्कार एफ्रोडिसियास (एवमेव) हिन्दू कर चुका था, जब महाप्रलय के लगभग 900 वर्ष बाद | *शतरंज के हाथी को 'रूख' कहते हैं जबकि यूनानी इसे 'युद्ध-रथ' कहते हैं। इसका आविष्कार एथेंस में 'मनकालुस'(मिर्तिलोस) ने किया था और एथेंसवासियों का कहना है कि सबसे पहले युद्ध के रथों पर वे ही सवार हुए थे। लेकिन उस समय के पहले उनका आविष्कार एफ्रोडिसियास (एवमेव) हिन्दू कर चुका था, जब महाप्रलय के लगभग 900 वर्ष बाद [[मिस्र]] पर उसका राज्य था। उन रथों को दो घोड़े खींचते थे। | ||
*रथ में एक हाथी, तीन सवार और पांच प्यादे होते हैं। | *रथ में एक हाथी, तीन सवार और पांच प्यादे होते हैं। | ||
*युद्ध की तैयारी, तंबू तानने और तंबू उखाड़ने के लिए उपर्युक्त सभी की आवश्यकता होती है। | *युद्ध की तैयारी, तंबू तानने और तंबू उखाड़ने के लिए उपर्युक्त सभी की आवश्यकता होती है। |
Revision as of 13:56, 28 January 2011
अक्षौहिणी सेना
अक्षौहिणी हि सेना सा तदा यौधिष्ठिरं बलम् ।
प्रविश्यान्तर्दधे राजन्सागरं कुनदी यथा ॥[1]
- महाभारत के युद्घ में अठारह अक्षौहिणी सेना नष्ट हो गई ।
एक अक्षौहिणी सेना :
एक अक्षौहिणी में 21870 हाथी, 21870 रथ, 65610 घोड़े और 109350 पैदल होते थे। कुरुक्षेत्र के युद्ध में इस प्रकार की 18 अक्षौहिणी सेना ने भाग लिया था।
- 21,870 रथ
- 21,870 हाथी
- 1,09,350 पैदल
- 65,610 घुड़सवार
प्राचीन काल की चतुरंगिणी सेना:
प्राचीन भारत में सेना के चार अंग होते थे-हाथी, घोड़े, रथ और पैदल। जिस सेना में ये चारों अंग होते थे, वह चतुरंगिणी सेना कहलाती थी।
महाभारत के आदिपर्व और सभापर्व अनुसार
- अक्षौहिणी सेना में कितने पैदल, घोड़े, रथ और हाथी होते है? इसका हमें यथार्थ वर्णन सुनाइये, क्योंकि आपको सब कुछ ज्ञात है[2]
- उग्रश्रवाजी ने कहा- एक रथ, एक हाथी, पाँच पैदल सैनिक और तीन घोड़े-बस, इन्हीं को सेना के मर्मज्ञ विद्वानों ने 'पत्ति' कहा है॥[3]
- इस पत्ति की तिगुनी संख्या को विद्वान पुरुष 'सेनामुख' कहते हैं। तीन 'सेनामुखो' को एक 'गुल्म' कहा जाता है॥[4]
- तीन गुल्म का एक 'गण' होता है, तीन गण की एक 'वाहिनी' होती है और तीन वाहिनियों को सेना का रहस्य जानने वाले विद्वानों ने 'पृतना' कहा है।[5]
- तीन पृतना की एक 'चमू' तीन चमू की एक 'अनीकिनी' और दस अनीकिनी की एक 'अक्षौहिणी' होती है। यह विद्वानों का कथन है।[6]
- श्रेष्ठ ब्राह्मणो! गणित के तत्त्वज्ञ विद्वानों ने एक अक्षौहिणी सेना में रथों की संख्या इक्कीस हज़ार आठ सौ सत्तर (21870) बतलायी है। हाथियों की संख्या भी इतनी ही कहनी चाहिये।[7]
- निष्पाप ब्राह्मणो! एक अक्षौहिणी में पैदल मनुष्यों की संख्या एक लाख नौ हज़ार तीन सौ पचास (109350) जाननी चाहिये।[8]
- एक अक्षौहिणी सेना में घोड़ों की ठीक-ठीक संख्या पैंसठ हज़ार छ: सौ दस (65610) कही गयी है।[9]
- तपोधनो! संख्या का तत्त्व जानने वाले विद्वानों ने इसी को अक्षौहिणी कहा है, जिसे मैंने आप लोगों को विस्तारपूर्वक बताया है।[10]
- श्रेष्ठ ब्राह्मणो! इसी गणना के अनुसार कौरवों-पाण्डवों दोनों सेनाओं की संख्या अठारह अक्षौहिणी थी।[11]
- अद्भुत कर्म करने वाले काल की प्रेरणा से समन्तपञ्चक क्षेत्र में कौरवों को निमित्त बनाकर इतनी सेनाएँ इकट्ठी हुई और वहीं नाश को प्राप्त हो गयीं।[12]
अलवेरूनी के अनुसार
अलवेरूनी ने अक्षौहिणी की परिमाण-संबंधी व्याख्या इस प्रकार की है-
- एक अक्षौहिणी में 10 अंतकिनियां होती हैं।
- एक अंतकिनी में 3 चमू होते हैं।
- एक चमू में 3 पृतना होते हैं।
- एक पृतना में 3 वाहिनियां होती हैं।
- एक वाहिनी में 3 गण होते हैं।
- एक गण में 3 गुल्म होते हैं।
- एक गुल्म में 3 सेनामुख होते हैं।
- एक सेनामुख में 3 पंक्ति होती हैं।
- एक पंक्ति में 1 रथ होता है।
- शतरंज के हाथी को 'रूख' कहते हैं जबकि यूनानी इसे 'युद्ध-रथ' कहते हैं। इसका आविष्कार एथेंस में 'मनकालुस'(मिर्तिलोस) ने किया था और एथेंसवासियों का कहना है कि सबसे पहले युद्ध के रथों पर वे ही सवार हुए थे। लेकिन उस समय के पहले उनका आविष्कार एफ्रोडिसियास (एवमेव) हिन्दू कर चुका था, जब महाप्रलय के लगभग 900 वर्ष बाद मिस्र पर उसका राज्य था। उन रथों को दो घोड़े खींचते थे।
- रथ में एक हाथी, तीन सवार और पांच प्यादे होते हैं।
- युद्ध की तैयारी, तंबू तानने और तंबू उखाड़ने के लिए उपर्युक्त सभी की आवश्यकता होती है।
- एक अक्षौहिणी में 21,870 रथ, 21,870 हाथी, 65,610 सवार और 109,350 पैदल सैनिक होते हैं।
- हर रथ में चार घोड़े और उनका सारथी होता है जो बाणों से सुसज्जित होता है, उसके दो साथियों के पास भाले होते हैं और एक रक्षक होता है जो पीछे से सारथी की रक्षा करता है और एक गाड़ीवान होता है।
- हर हाथी पर उसका हाथीवान बैठता है और उसके पीछे उसका सहायक जो कुर्सी के पीछे से हाथी को अंकुश लगाता है; कुर्सी में उसका मालिक धनुष-बाण से सज्जित होता है और उसके साथ उसके दो साथी होते हैं जो भाले फेंकते हैं और उसका विदूषक हौहवा (?) होता है जो युद्ध से इतर अवसरों पर उसके आगे चलता है।
- तदनुसार जो लोग रथों और हाथियों पर सवार होते हैं उनकी संख्या 284,323 होती है (एवमेव के अनुसार)। जो लोग घुड़सवार होते हैं उनकी संख्या 87,480 होती है। एक अक्षौहिणी में हाथियों की संख्या 21,870 होती है, रथों की संख्या भी 21,870 होती है, घोड़ों की संख्या 153,090 और मनुष्यों की संख्या 459,283 होती है।
- एक अक्षौहिणी सेना में समस्त जीवधारियों- हाथियों, घोड़ों और मनुष्यों-की कुल संख्या 634,243 होती है। अठारह अक्षौहिणीयों के लिए यही संख्या 11,416,374 हो जाती है अर्थात 393,660 हाथी, 2,755,620 घोड़े, 8,267,094 मनुष्य।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (5.49.19.0.6 उद्योगपर्व, एकोनविंशोऽध्यायः (19) श्लोक 6)
- ↑ अक्षौहिण्या: परीमाणं नराश्वरथदन्तिनाम्।
यथावच्चैव नो ब्रूहि सर्व हि विदितं तव॥ सौतिरूवाच
- ↑ एको रथो गजश्चैको नरा: पञ्च पदातय:।
त्रयश्च तुरगास्तज्झै: पत्तिरित्यभिधीयते॥
- ↑ एको रथो गजश्चैको नरा: पञ्च पदातय:।
पत्तिं तु त्रिगुणामेतामाहु: सेनामुखं बुधा:।
त्रीणि सेनामुखान्येको गुल्म इत्यभिधीयते॥
- ↑ त्रयो गुल्मा गणो नाम वाहिनी तु गणास्त्रय:।
स्मृतास्तिस्त्रस्तु वाहिन्य: पृतनेति विचक्षणै:॥
- ↑ चमूस्तु पृतनास्तिस्त्रस्तिस्त्रश्चम्वस्त्वनीकिनी।
अनीकिनीं दशगुणां प्राहुरक्षौहिणीं बुधा:॥
- ↑ अक्षौहिण्या: प्रसंख्याता रथानां द्विजसत्तमा:।
संख्या गणिततत्त्वज्ञै: सहस्त्राण्येकविंशति:॥
शतान्युपरि चैवाष्टौ तथा भूयश्च सप्तति:।
गजानां च परीमाणमेतदेव विनिर्दिशेत्॥
- ↑ ज्ञेयं शतसहस्त्रं तु सहस्त्राणि नवैव तु।
नराणामपि पञ्चाशच्छतानि त्रीणि चानघा:॥
- ↑ पञ्चषष्टिसहस्त्राणि तथाश्वानां शतानि च।
दशोत्तराणि षट् प्राहुर्यथावदिह संख्यया॥
- ↑ एतामक्षौहिणीं प्राहु: संख्यातत्त्वविदो जना:।
यां व: कथितवानस्मि विस्तरेण तपोधना:॥
- ↑ एतया संख्यया ह्यासन् कुरुपाण्डवसेनयो:।
अक्षौहिण्यो द्विजश्रेष्ठा: पिण्डिताष्टादशैव तु॥
- ↑ समेतास्तत्र वै देशे तत्रैव निधनं गता:।
कौरवान् कारणं कृत्वा कालेनाद्भुतकर्मणा॥
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