युधिष्ठिर और चार्वाक: Difference between revisions
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Revision as of 09:48, 21 March 2011
- महाभारत में विजय प्राप्त करने के उपरांत युधिष्ठिर जब राजमहल में पहुँचे तो बहुत लोग एकत्र थे। उन्होंने युधिष्ठिर का स्वागत किया।
- एक ओर बहुत से ब्राह्मणों के मध्य ब्राह्मण-वेश में चार्वाक नामक राक्षस भी खड़ा था।
- वह दुर्योधन के परम मित्रों में से था। उसने आगे बढ़कर कहा- मैं इन ब्राह्मणों की ओर से यह कहना चाहता हूँ कि तुम अपने बंधु-बांधवों का वध करने वाले एक दुष्ट राजा हो। तुम्हें धिक्कार है। तुम्हारा मर जाना ही श्रेयस्कर है। युधिष्ठिर अवाक् देखते रह गये।
- ब्राह्मण आपस में खुसपुसाए कि हमारी ओर से यह ऐसा कहने वाला कौन है, जबकि हमने ऐसा कहा ही नहीं? उन्हें अपमान की अनुभूति हुई, तभी कुछ ब्राह्मणों ने उसे पहचान लिया।
- उन्होंने युधिष्ठिर को आशीर्वाद देते हुए बतलाया कि वह दुर्योधन का मित्र है- राक्षस होते हुए भी ब्राह्मण-वेश में आया है।
- इससे पहले कि युधिष्ठिर कुछ कहें, ब्राह्मणों के तेज़ से जलकर चार्वाक वहाँ गिर गया।
- वह अचेतन तथा जड़ हो गया।
- श्रीकृष्ण ने बताया कि पूर्वकाल में चार्वाक ने अनेक वर्षों तक बद्रिकाश्रम में तपस्या की थी, तदनंतर उसने ब्रह्मा से वर प्राप्त किया कि उसे किसी भी प्राणी से मृत्यु का भय न रहें ब्रह्मा ने साथ ही यह भी कहा कि यदि वह किसी ब्राह्मण का अपमान कर देगा तो उसके तेज़ से नष्ट हो जायेगा।
- दूसरे ब्राह्मणों की ओर से बोलने की बात कहकर उसने ब्राह्मणों को रुष्ट कर दिया- इसी से उनके तेज़ से वह भस्म हो गया।
- ब्राह्मणों ने सामूहिक रूप से युधिष्ठिर का अभिनंदन किया।[1]
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