अलबुकर्क: Difference between revisions
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==पुर्तग़ाली बस्तियों की स्थापना== | ==पुर्तग़ाली बस्तियों की स्थापना== |
Revision as of 10:07, 14 March 2012
thumb|250px|अलबुकर्क अलबुकर्क या 'अलफ़ांसो-द-अल्बुकर्क' भारत में पुर्तग़ाली अधिकार में आये भारतीय क्षेत्र का दूसरा वायसराय था। वह फ़्रांसिस्को-द-अल्मेडा के बाद 1509 ई. में पुर्तग़ालियों का गवर्नर बनकर भारत आया था। अलबुकर्क को भारत में पुर्तग़ाली शक्ति का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उसने कोचीन को अपना मुख्यालय बनाया था।
पुर्तग़ाली बस्तियों की स्थापना
अलबुकर्क ने पूर्व में पुर्तग़ाली साम्राज्य की स्थापना के उद्देश्य से कई महत्त्वपूर्ण ठिकानों में पुर्तग़ाली शासन और व्यापारी कोठियाँ स्थापित कीं। कुछ स्थानों में उसने पुर्तग़ाली बस्तियाँ बसाईं तथा भारतीयों और पुर्तग़ालियों में विवाह सम्बन्धों को प्रोत्साहित किया। अलबुकर्क ने ऐसे स्थानों में क़िले बनवाये, जहाँ पर न तो पुर्तग़ाली बस्तियाँ बसाई जा सकती थीं और न ही जीते जा सकते थे। उसने स्थानीय राजाओं को पुर्तग़ाल के राजा की प्रभुता स्वीकार करने और उसे भेंट देने को प्रेरित किया।
राज्य नीति
अलबुकर्क ने बीजापुर के सुल्तान से 1510 ई. में गोआ छीन लिया, 1511 ई. में मलक्का पर और 1515 ई. में ओर्जुम पर अधिकार कर लिया। अलबुकर्क अपने उद्देश्य को पूरा करने में ग़लत-सही तरीक़ों का ख्याल नहीं करता था। कालीकट के राजा जमोरिन की हत्या उसने ज़हर देकर करवा दी, जिसने पुर्तग़ालियों के आगमन पर उससे मित्रता का व्यवहार किया था। पुर्तग़ालियों की हिन्दुस्तानी औरतों से शादी कर यहाँ बसने की नीति सफल नहीं हुई और इसके परिणाम स्वरूप पुर्तग़ाली भारतीयों की मिश्रित जाति बन गई, जिससे पूर्व में पुर्तग़ाली साम्राज्य की स्थापना में कोई ख़ास मदद नहीं मिली।
अधूरा स्वप्न
अलबुकर्क ने मुसलमानों के नर-संहार की नीति अपनाई, जिससे पुर्तग़ालियों के साथ हिन्दुस्तानियों की हमदर्दी भी ख़त्म हो गई। इस प्रकार अलबुकर्क ने जिस 'पुर्तग़ाली साम्राज्य' की स्थापना का स्वप्न देखा था, वह उसकी मृत्यु के बाद बिखर गया। 1515 ई. में अलबुकर्क की मृत्यु हो गई, और उसे गोवा में ही दफ़ना दिया गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 18 |
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