गीता 7:6: Difference between revisions

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Revision as of 11:04, 21 March 2010

गीता अध्याय-7 श्लोक-6 / Gita Chapter-7 Verse-6

प्रसंग-


इस प्रकार भगवान् की समस्त विश्व के परमकरण और परमाधार हैं, तब स्वभावत: ही यह भगवान् स्वरूप है और उन्हीं से व्याप्त है । अब इसी बात को स्पष्ट करने के लिये भगवान् कहते हैं-


एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय ।
अहं कृत्स्नस्य जगत: प्रभव: प्रलयस्तथा ।।6।।



हे <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! तू ऐसा समझ कि सम्पूर्ण भूत इन दोनों प्रकृतियों से ही उत्पन्न होने वाले हैं और मैं सम्पूर्ण जगत् का प्रभव तथा प्रलय हूँ अर्थात् सम्पूर्ण जगत् का मूल कारण हूँ ।।6।।

Arjuna, of all that is material and all that is spiritual in this world, know for certain that I am both its origin and dissolution.(6)


इति =ऐसा; उपधारय; = समझ (कि); सर्वाणि = संपूर्ण; भूतानि =भूत; एतद्योनीति = इन दोनों प्रकृतियों से ही उत्पत्ति वाले हैं (और); अहम् = मैं; कृत्स्त्रस्य = संपूर्ण; प्रभव: = उत्पत्ति; प्रलय: = प्रलरूप हूं



अध्याय सात श्लोक संख्या
Verses- Chapter-7

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)