गीता 13:13: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (1 अवतरण)
m (Text replace - "<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>" to "<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>")
Line 57: Line 57:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{महाभारत}}
{{गीता2}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{गीता2}}
{{महाभारत}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>

Revision as of 12:44, 21 March 2010

गीता अध्याय-13 श्लोक-13 / Gita Chapter-13 Verse-13

प्रसंग-


इस प्रकार ज्ञेयतत्व के वर्णन की प्रतिज्ञा करके उस तत्व का संक्षेप में वर्णन किया गया; परन्तु वह ज्ञेय तत्व बड़ा गहन है । अत: साधकों को उसका ज्ञान कराने के लिये सर्वव्यापकत्वादि लक्षणों के द्वारा उसी का पुन: विस्तारपूर्वक वर्णन करते हैं-


सर्वत:पाणिपादं तत्सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम् ।
सर्वत:श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति ।।13।।



वह सब ओर हाथ-पैरवाला, सब ओर नेत्र, सिर और मुख वाला तथा सब ओर कान वाला है, क्योंकि वह संसार में सबको व्याप्त करके स्थित है ।।13।।

It has hands and feet on all sides, eyes, head and mouth in all directions, and ears all round; for it stands pervading all in the universe. (13)


तत् = वह ; सर्वत:पाणिपादम् = सब ओरसे हाथ पैरवाला (एवं) ; सर्वतोकक्षि शिरोमुखम् = सब ओर से नेत्र सिर और मुखवाला (तथा) ; सर्वत:श्रुतिमत् = सब ओर से श्रोत्रवाला ; अस्ति = है ; यत: = क्योंकि (वह) ; लोके = संसार में ; सर्वम् = सबको ; आवृत्य = व्याप्त करके ; तिष्ठति = स्थित है ;



अध्याय तेरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-13

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)