गीता 16:13: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (1 अवतरण)
m (Text replace - "<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>" to "<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>")
Line 57: Line 57:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{महाभारत}}
{{गीता2}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{गीता2}}
{{महाभारत}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>

Revision as of 13:17, 21 March 2010

गीता अध्याय-16 श्लोक-13 / Gita Chapter-16 Verse-13

प्रसंग-


पिछले चार श्लोकों में आसुर स्वभाव वाले मनुष्यों के लक्षण और आचरण बतलाकर अब अगले चार श्लोकों में उनके 'अहंता' 'ममता' और 'मोह' युक्त संकल्पों का निरूपण करते हुए उनकी दुर्गति का वर्णन करते हैं-


इदमद्य मया लब्धमिमं प्राप्यस्ये मनोरथम् ।

इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुनर्धनम् ।।13।।


वे सोचा करते हैं कि मैंने आज यह प्राप्त कर लिया है और अब इस मनोरथ को प्राप्त कर लूँगा । मेरे पास यह इतना धन है और फिर भी यह हो जायेगा ।।13।।

They say to themselves, This much has been secured by me today and now I shall realize this ambition. So much wealth is already with me and yet again this shall be mine. (13)


मया = मैंने ; अद्य = आज ; इदम् = यह (तो) ; लब्धम् = पाया है (और) ; इमम् = इस ; मनोरथम् = मनोरथ को ; प्राप्स्ये = प्राप्त होऊंगा (तथा) ; मे = मेरे पास ; इदम् = यह (इतना) ; धनम् = धन ; अस्ति = है (और) ; पुन: = फिर ; अपि = भी ; इदम् = यह ; भविष्यति = होवेगा ;



अध्याय सोलह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-16

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15, 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)