गीता 7:16: Difference between revisions

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Revision as of 15:14, 21 March 2010

गीता अध्याय-7 श्लोक-16 / Gita Chapter-7 Verse-16

प्रसंग-


चार प्रकार के भक्तों की बात कहकर अब उनमे ज्ञानी भक्त के प्रेम की प्रशंसा और अन्यान्य भक्तों की अपेक्षा उसकी श्रेष्ठता का निरूपण करते हैं-


चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन ।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ।।16।।



हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> । उत्तम कर्म करने वाले अर्थार्थी, आर्त्त, जिज्ञासु और ज्ञानी- ऐसे चार प्रकार के भक्तजन मुझ को भजते है। ।।16।।

Four types of devotees of noble deeds worship Me, Arjuna, the seeker after worldly possession, the afflicted, the seeker for knowledge, and man of wisdom, O best of Bharatas.(16)


भरतर्षभ = हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ ; अर्जुन = अर्जुन ; सुकृतिन: = उत्तम कर्मवाले ; ज्ञानी = ज्ञानी अर्थात् निष्कामी (ऐसे) ; चतुर्विधा: = चार प्रकार के ; अर्थार्थी = अर्थार्थी ; आर्त: = आर्त ; जिज्ञासु: = जिज्ञासु ; च = और ; जना: = भक्तजन ; माम् = मेरे को ; भजन्ते = भजते हैं



अध्याय सात श्लोक संख्या
Verses- Chapter-7

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)