गीता 18:65: Difference between revisions
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मन्मना: भव = केवल मुझें सच्चिदानन्दघन वासुदेव परमात्मा में ही अनन्य प्रेम से नित्य निरन्तर अचल मनवाला हो (और) ; मभ्दक्त (भव) = मुझ परमेश्र्वर को ही अतिशय श्रद्धा भक्तिसहित निष्काभाव से नाम गुण और प्रभाव के श्रवण कीर्तन मनन और पठनपाठन द्वारा निरन्तर भजनेवाला हो (तथा) ; मद्याजी (भव) = मेरा (शख्ड चक्र गदा पद्म और किरीट कुण्डल आदि भूषणों से युक्त पीताम्बर वनमाला और कौस्तुभमणिधारी विष्णुका) मन वाणी और शरीर के द्वारा सर्वस्व अर्पण करके अतिशय श्रद्धा भक्ति और प्रेम से विव्हलतापूर्वक पूजन करनेवाला हो (और) ; माम् = मुझ सर्वशक्तिमान् विभूति बल ऐश्र्वर्य माधुर्य गम्भीरता उदारता वात्सल्य और सुहृदया आदि गुणों से सम्पन्न सबके आश्रयरूप वासुदेव को ; नमस्कुरु = विनयभावपूर्वक भक्तिसहित साष्टांग दण्डवत् प्रमाण कर ; एवम् = ऐसा करने से (तूं) ; माम् = मेरे को एव = ही ; एष्यसि = प्राप्त होगा (यह मैं) ; ते= तेरे लिये ; सत्यम् = सत्य ; प्रतिजाने = प्रतिज्ञा करता हूं ; यत: = क्योंकि (तूं) ; मे = मेरा ; प्रिय: = अत्यन्त प्रिय (सखा) ; असि = है | मन्मना: भव = केवल मुझें सच्चिदानन्दघन वासुदेव परमात्मा में ही अनन्य प्रेम से नित्य निरन्तर अचल मनवाला हो (और) ; मभ्दक्त (भव) = मुझ परमेश्र्वर को ही अतिशय श्रद्धा भक्तिसहित निष्काभाव से नाम गुण और प्रभाव के श्रवण कीर्तन मनन और पठनपाठन द्वारा निरन्तर भजनेवाला हो (तथा) ; मद्याजी (भव) = मेरा (शख्ड चक्र गदा पद्म और [[किरीट]] कुण्डल आदि भूषणों से युक्त पीताम्बर वनमाला और कौस्तुभमणिधारी विष्णुका) मन वाणी और शरीर के द्वारा सर्वस्व अर्पण करके अतिशय श्रद्धा भक्ति और प्रेम से विव्हलतापूर्वक पूजन करनेवाला हो (और) ; माम् = मुझ सर्वशक्तिमान् विभूति बल ऐश्र्वर्य माधुर्य गम्भीरता उदारता वात्सल्य और सुहृदया आदि गुणों से सम्पन्न सबके आश्रयरूप वासुदेव को ; नमस्कुरु = विनयभावपूर्वक भक्तिसहित साष्टांग दण्डवत् प्रमाण कर ; एवम् = ऐसा करने से (तूं) ; माम् = मेरे को एव = ही ; एष्यसि = प्राप्त होगा (यह मैं) ; ते= तेरे लिये ; सत्यम् = सत्य ; प्रतिजाने = प्रतिज्ञा करता हूं ; यत: = क्योंकि (तूं) ; मे = मेरा ; प्रिय: = अत्यन्त प्रिय (सखा) ; असि = है | ||
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Revision as of 14:01, 19 May 2014
गीता अध्याय-18 श्लोक-65 / Gita Chapter-18 Verse-65
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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