गीता 18:4: Difference between revisions
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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इस प्रकार | इस प्रकार सन्न्यास और त्याग के विषयों में विद्धानों के भिन्न-भिन्न मत बतलाकर अब भगवान त्याग के विषय में अपना निश्चय बतलाना आरम्भ करते हैं- | ||
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हे पुरुष श्रेष्ठ [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ! | हे पुरुष श्रेष्ठ [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ! सन्न्यास और त्याग, इन दोनों में से पहले त्याग के विषय में मेरा निश्चय सुन। क्योंकि त्याग सात्त्विक, राजस और तामस भेद से तीन प्रकार का कहा गया है ।।4।। | ||
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Latest revision as of 13:53, 2 May 2015
गीता अध्याय-18 श्लोक-4 / Gita Chapter-18 Verse-4
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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