गीता 2:20: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - "होनेवाला" to "होने वाला")
 
Line 35: Line 35:
|-
|-
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" |
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" |
अयम् = यह आत्मा ; कदाचित = किसी कालमें भी ; जायते = जन्मता है ; वा = और ; म्रियते = मरता है ; वा = अथवा ; (अयम्) = यह आत्मा ; भूत्वा = हो करके ; भूय: = फिर ; भविता = होनेवाला है (क्योंकि) ; अयम् = यह य अज: = अजन्मा ; नित्य: = नित्य ; शाश्रत: = शाश्रत (और) ; पुराण: = पुरातन है ; शरीरे = शरीरके ; हन्यमाने = नाश होनेपर भी (यह) ; न हन्यते = नाश नहीं होता है ;  
अयम् = यह आत्मा ; कदाचित = किसी कालमें भी ; जायते = जन्मता है ; वा = और ; म्रियते = मरता है ; वा = अथवा ; (अयम्) = यह आत्मा ; भूत्वा = हो करके ; भूय: = फिर ; भविता = होने वाला है (क्योंकि) ; अयम् = यह य अज: = अजन्मा ; नित्य: = नित्य ; शाश्रत: = शाश्रत (और) ; पुराण: = पुरातन है ; शरीरे = शरीरके ; हन्यमाने = नाश होनेपर भी (यह) ; न हन्यते = नाश नहीं होता है ;  
|-
|-
|}
|}

Latest revision as of 13:53, 6 September 2017

गीता अध्याय-2 श्लोक-20 / Gita Chapter-2 Verse-20

प्रसंग-


उन्नीसवें श्लोक में भगवान् ने यह बात कही कि आत्मा न तो किसी को मारता है और न किसी के द्वारा मारा जाता है; उसके अनुसार बीसवें श्लोक में उसे विकार रहित बतलाकर इस बात का प्रतिपादन किया कि वह क्यों नहीं मारा जाता। अब अगले श्लोक में यह बतलाते हैं कि वह किसी को मारता क्यों नहीं –


न जायते म्रियते वा कदाचिन्-
नायं भूत्वा भविता वा न भूय: ।
अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।।20।।




यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है; क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है, शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता ।।20।।


The soul is never born nor dies; nor does it become only after being born. For it is unborn, eternal, everlasting and ancient; even though the body is slain, the soul is not.(20)


अयम् = यह आत्मा ; कदाचित = किसी कालमें भी ; जायते = जन्मता है ; वा = और ; म्रियते = मरता है ; वा = अथवा ; (अयम्) = यह आत्मा ; भूत्वा = हो करके ; भूय: = फिर ; भविता = होने वाला है (क्योंकि) ; अयम् = यह य अज: = अजन्मा ; नित्य: = नित्य ; शाश्रत: = शाश्रत (और) ; पुराण: = पुरातन है ; शरीरे = शरीरके ; हन्यमाने = नाश होनेपर भी (यह) ; न हन्यते = नाश नहीं होता है ;



अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख