गीता 12:6: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - "सृष्टा" to "स्रष्टा")
 
Line 8: Line 8:
'''प्रसंग-'''
'''प्रसंग-'''
----
----
इस प्रकार निर्गुण-निराकार [[ब्रह्मा]]<ref>सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, [[विष्णु]] एवं [[शिव]] की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं।</ref> की उपासना से देहाभिमानियों के लिये परमात्मा की प्राप्ति कठिन बतलाने के उपरान्त अब दो [[श्लोक|श्लोकों]] द्वारा सगुण परमेश्वर की उपासना से परमेश्वर की प्राप्ति शीघ्र और अनायास होने की बात कहते हैं-  
इस प्रकार निर्गुण-निराकार [[ब्रह्मा]]<ref>सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, [[विष्णु]] एवं [[शिव]] की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य स्रष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं।</ref> की उपासना से देहाभिमानियों के लिये परमात्मा की प्राप्ति कठिन बतलाने के उपरान्त अब दो [[श्लोक|श्लोकों]] द्वारा सगुण परमेश्वर की उपासना से परमेश्वर की प्राप्ति शीघ्र और अनायास होने की बात कहते हैं-  
----
----
<div align="center">
<div align="center">

Latest revision as of 07:28, 7 November 2017

गीता अध्याय-12 श्लोक-6 / Gita Chapter-12 Verse-6

प्रसंग-


इस प्रकार निर्गुण-निराकार ब्रह्मा[1] की उपासना से देहाभिमानियों के लिये परमात्मा की प्राप्ति कठिन बतलाने के उपरान्त अब दो श्लोकों द्वारा सगुण परमेश्वर की उपासना से परमेश्वर की प्राप्ति शीघ्र और अनायास होने की बात कहते हैं-


ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्परा: ।
अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासने ।।6।।



परन्तु जो मेरे परायण रहने वाले भक्तजन सम्पूर्ण कर्मों को मुझ में अर्पण करके मुझ सगुण रूप परमेश्वर को ही अनन्य भक्ति योग से निरन्तर चिन्तन करते हुए भजते हैं ।।6।।

On the other hand, those who depending exclusively on me (god with attributes), constantly meditation on me with single-minded devotion. (6)


मत्परा: = मेरे परायण हुए भक्तजन; सर्वाणि = कर्मोंको; मयि = मेरे में; संन्यस्य = अर्पण करके; माम् = मुझ सगुणरूप परमेश्वराको; एव = ही; अनन्येन = (तैलधारा के सध्श ) अनन्य; योगेन = ध्यानयोग से; ध्यायन्त: = निरन्तर चिन्तन करते हुए; उपासते = भजते हैं



अध्याय बारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-12

1 | 2 | 3,4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13, 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य स्रष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं।

संबंधित लेख