गीता 6:16

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 06:07, 5 January 2013 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

गीता अध्याय-6 श्लोक-16 / Gita Chapter-6 Verse-16

नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नत: ।
न चातिस्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ।।16।।



हे अर्जुन[1] ! यह योग न तो बहुत खाने वाले का, न बिल्कुल न खाने वाले का, न बहुत शयन करने के स्वभाव वाले का और न सदा जागने वाले का ही सिद्ध होता है ।।16।।

Arjuna, this yoga is neither for him who overeats, nor for him who observes a complete fast; it is neither for him who is given to too much sleep; nor even for him who is ceaselessly awake. (16)


योग: = यह योग; तु = तो; अति =बहुत; अश्रत: = खाने वाले का; अस्ति = सिद्ध होता है; एकान्तम् = बिल्कुल; अनश्रत: = न खाने वाले का; स्पप्न शीलस्य = शयन् करने के स्वभाव वाले का; जाग्रत: = अत्यन्त जागने वाले का;



अध्याय छ: श्लोक संख्या
Verses- Chapter-6

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः