गीता 13:32

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 07:38, 19 March 2010 by Ashwani Bhatia (talk | contribs) (Text replace - '<td> {{गीता अध्याय}} </td>' to '<td> {{गीता अध्याय}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>')
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

गीता अध्याय-13 श्लोक-32 / Gita Chapter-13 Verse-32

प्रसंग-


शरीर में स्थित होने पर भी आत्मा क्यों नहीं लिप्त होता ? इस पर कहते हैं-


यथा सर्वगतं सौक्ष्म्यादाकाशं नोपलिप्यते ।
सर्वत्रावस्थितो देहे तथात्मा नोपलिप्यते ।।32।।



जिस प्रकार सर्वत्र व्याप्त आकाश सूक्ष्म होने के कारण लिप्त नहीं होता, वैसे ही देह में सर्वत्र स्थित आत्मा निर्गुण होने के कारण देह के गुणों से लिप्त नहीं होता ।।32।।

As the all-pervading ether is not tainted by reason of its subtlety, so seated everywhere in the body, the self is not affected by the attributes of the body due to its attributeless character. (32)


यथा = जिस प्रकार ; सर्वत्र व्याप्त हुआ (भी) ; आकाशम् = आकाश ; तथा = वैसे ही ; सर्वत्र = सर्वत्र ; देहे = देह में ; अवस्थित: = स्थित हुआ (भी) ; आत्मा = आत्मा ; सौक्ष्म्यात् = सूक्ष्म होने के कारण ; न उपलिप्यते = लिपायमान नहीं होता है (गुणातीत होने के कारण देहके गुणों से) ; न उपलिप्यते = लिपायमान नहीं होता है ;



अध्याय तेरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-13

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः