परंतु अपने अधीन किये हुए अन्त:करणवाला साधक अपने वश में की हुई, राग द्वेष से रहित इन्द्रियों द्वारा विषयों में विचरण करता हुआ अन्त:करण की प्रसन्नता को प्राप्त होता है ।।64।।
But the self-controlled practicant, while enjoying the various sense-objects through his senses, which are disciplined and free from likes and dislikes, attains placidity of mind.(64)
तु = परन्तु ; विधेयात्मा = स्वाधीन अन्त:करणवाला (पुरुष) ; रागद्वेषवियुक्तै: = रागद्वेषसे रहित ; आत्मवश्यै: = अपने वशमें की हुई ; इन्द्रियै: = इन्द्रियोंद्वारा ; विषयान् = विषयोंको ; चरन् = भोगता हुआ ; प्रसादम् = अन्त:करणकी प्रसन्नता अर्थात् स्वच्छताको ; अधिगच्छति = प्राप्त होता है;