गीता 12:17

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 10:02, 21 March 2010 by Ashwani Bhatia (talk | contribs) (1 अवतरण)
Jump to navigation Jump to search

गीता अध्याय-12 श्लोक-17 / Gita Chapter-12 Verse-17


यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काड्क्षति ।
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्य: स मे प्रिय: ।।17।।



जो न कभी हर्षित होता है, न द्वेष करता है, न शोक करता है, न कामना करता है तथा जो शुभ और अशुभ सम्पूर्ण कर्मों का त्यागी है- वह भक्ति युक्त पुरुष मुझको प्रिय है ।।17।।

He who neither rejoices nor hates, nor grieves, nor desires and who renounces both good and evil actions and is full of devotion, is dear to me. (17)


हृष्यति = हर्षित होता है; द्वेष्टि = द्वेष् करता है; शोचति = शोक करता है; काक्ष्डति = कामना करता है(तथा); य: = जो; शुभाशुभपरित्यागी = शुभ और अशुभ संपूर्ण कर्मों के फल का त्यागी है; भक्तमान् = भक्तियुक्त पुरुष; प्रिय: = प्रिय है;



अध्याय बारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-12

1 | 2 | 3,4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13, 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः