द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्णं तथान्यानपि योधवीरान् । मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान् ।।34।।
<balloon link="index.php?title=द्रोणाचार्य " title="द्रोणाचार्य कौरव और पांडवो के गुरु थे । कौरवों और पांडवों ने द्रोणाचार्य के आश्रम मे ही अस्त्रों और शस्त्रों की शिक्षा पायी थी । अर्जुन द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य थे । ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">
द्रोणाचार्य</balloon> और <balloon link="index.php?title=भीष्म " title="भीष्म महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक हैं । ये महाराजा शांतनु के पुत्र थे । अपने पिता को दिये गये वचन के कारण इन्होंनें आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था । इन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">भीष्म</balloon> पितामह तथा <balloon link="index.php?title=जयद्रथ " title="महाभारत में जयद्रथ सिंधु प्रदेश के राजा थे। जयद्रथ का विवाह कौरवों की एकमात्र बहन दुशाला से हुआ था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">जयद्रथ</balloon> और <balloon link="index.php?title=कर्ण " title="कर्ण कुन्ती व सूर्यदेव के पुत्र थे । एक अत्यन्त पराक्रमी तथा दानशील पुरुष। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">कर्ण</balloon> तथा और भी बहुत-से मेरे द्वारा मारे हुए शूरवीर योद्धाओं को तू मार । भय मत कर । नि:सन्देह तू युद्ध में वैरियों को जीतेगा । इसलिये युद्ध कर ।।34।।
Do you kill Drona and Bhisma and Jayadratha and Karna and even other brave warriors; who stand already killed by Me; fear not. You will surely conquer the enemies in this war; therefore, fight. (34)
द्रोणम् = द्रोणाचार्य ; च = तथा; अन्यान् = और भी बहुत से; मया = मेरे द्वारा हतान् = मारे हुए; योधवीरान् = शूरवीर योधाओंको; त्वम् = तूं; जहि = मार(और); मा व्यथिष्ठा: = भय मत कर; रणे = (नि:सन्देह तूं) युद्धमें; सपत्रान् = वैरियों को; जेतासि = जीतेगा; (अतJ = इसलिये; युध्यस्व = युद्ध कर