इस प्रकार आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य समुदाय के लक्षण सुनने के लिये <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> को सावधान करके अब भगवान् उनका वर्णन करते हैं-
प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुरा: ।
न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते ।।7।।
आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य प्रवृत्ति और निवृत्ति इन दोनों को ही नहीं जानते । इसलिये उनमें न तो बाहर-भीतर की शुद्धि है, न श्रेष्ठ आचरण है और न ही सत्य भाषण है ।।7।।
Men possessing a demoniac disposition know not what is right activity and what is right abstinence from activity. Hence they possess neither purity (external or internal) nor good conduct nor even truthfulness.(7)
आसुरा: = आसुरी स्वभाव वाले ; जना: = मनुष्य ; प्रवृत्तिम् = कर्तव्यकार्य में प्रवृत्त होने की ; च = और ; निवृत्तिम् = अकर्तव्यकार्य से निवृत्त होने को ; च = भी ; न = नहीं ; विदु: = जानते हैं (इसलिये) ; तेषु = उनमें ; न = न (तो) ; शौचम् = बाहर भीतर की शुद्धि है ; न = न ; आचार: = श्रेष्ठ आचरण है ; च = और ; न = न ; सत्यम् = सत्य भाषण ; अपि = ही ; विद्यते = है ;