अपनी विषादयुक्त स्थिति का वर्णन करके अब <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> अपने विचारों के अनुसार युद्ध का अनौचित्य सिद्ध करते हैं-
गाण्डीवं स्त्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्राते । न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मन: ।।30।।
हाथ से गाण्डीव धनुष गिर रहा है और त्वचा भी बहुत जल रही है तथा मेरा मन भ्रमित-सा हो रहा है, इसलिये मैं खड़ा रहने को भी समर्थ नहीं हूँ ।।30।।
i am now unable to stand here any longer. i am forgetting myself, and my mind is reeling. i foresee only evil, O killer of the Kesi demon.(30)
हस्तात् = हाथ से;गाण्डीवम् = गाण्डीव धनुष; स्त्रंसते =गिरता है; च =और; त्वक् = त्वचा; एव =भी; परिदह्ते = बहुत जलती है; भ्रमति इव =भ्रमित सा हो रहा है; अवस्थातुम् = खड़ा रहने को; न शक्रोमि =समर्थ नहीं है