सांख्ययोगौ पृथग्बाला: प्रवदन्ति न पण्डिता: । एकमप्यास्थित: सम्यगुभयोर्विन्दते फलम् ।।4।।
उपर्युक्त संन्यास और कर्मयोग को मूर्ख लोग पृथक्-पृथक् फल देने वाले कहते हैं न कि पण्डित जन, क्योंकि दोनों में से एक में भी सम्यक् प्रकार से स्थित पुरुष दोनों के फलस्वरूप परमात्मा को प्राप्त होता है ।।4।।
Only the ignorant speak of karma-yoga and devotional service as being different from the analytical study of the material world [sankhya]. Those who are actually learned say that he who applies himself well to one of these paths achieves the results of both.(4)
सांख्ययोगौ = सन्यास और निष्काम कर्मयोग को; बाला: = मूर्ख लोग; पृथक् = अलग अलग (फल वाले); प्रवदन्ति = कहते हैं; न = न कि; पण्डितजन; (क्योंकि दोनों में से ) ; एकम् = एक में, अपि = भी; सम्यक = अच्छी प्रकार; आस्थित: = स्थित हुआ (पुरुष); उभयो: = दोनों के; फलम् = फलरूप परमात्मा को; विन्दते = प्राप्त होता है