इस प्रकार आत्मा की नित्यता का प्रतिपादन करके अब उसकी निर्विकारता का प्रतिपादन करते हुए आत्मा के लिये शोक करना अनुचित सिद्ध करते हैं-
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपा:। न चैव न भविष्याम: सर्वे वयमत: परम् ।।12।।
न तो ऐसा ही है कि मैं किसी काल में नहीं था या तू नहीं था अथवा ये राजा लोग नहीं थे और न ऐसा ही है कि इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे ।।12।।
In fact, there was never a time when I was not, or when you or these kings were not. Nor is it a fact that hereafter we shall all cease to be.(12)
न = न ; तु = तो ; (एवम्) = ऐसा ; एव = ही (है कि) ; अहम् = मैं ; जातु = किसी कालमें ; न = नहीं ; आसम् = था (अथवा) ; त्वम् = तूं ; न = नहीं ; (आसी:) = था (अथवा) ; इमे = यह ; जनाधिपा: = राजालोग ; न = नहीं ; (आसन्) = थे ; च = और ; न = न; (एवम्) = ऐसा ; एव = ही (है कि) ; अत: = इससे ; परम् = आगे ; वयम् = हम ; सर्वे = सब ; न = नहीं ; भविष्याम: = रहेंगे ;