गीता 10:17

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गीता अध्याय-10 श्लोक-17 / Gita Chapter-10 Verse-17


कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन् ।
केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया ।।17।।



हे योगेश्वर[1] ! मैं किस प्रकार निरन्तर चिन्तन करता हुआ आपको जानूँ और हे भगवान् ! आप किन-किन भावों में मेरे द्वारा चिन्तन करने योग्य हैं ? ।।17।।

O Master of Yoga, through what process of continuous meditation shall I know you? And in what particular forms, O Lord, are you to be meditated upon by me?


योगिन् = हे योगेश्वर; कथम् = किस प्रकार; सदा = निरन्तर; परिचिन्तयन् = चिन्तन करता हुआ ; त्वाम् = आपको; विद्याम् = जानूं; भगवन् = हे भगवन् (आप); केषु = किन; भावेषु = भावों में; मया = मेरे द्वारा; चिन्त्य: चिन्तन करने योग्य; असि = हैं



अध्याय दस श्लोक संख्या
Verses- Chapter-10

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मधुसूदन, केशव, योगेश्वर, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।

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