भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तशो मया । त्वत्त: कमलपत्राक्ष महात्म्यमपि चाव्ययम् ।।2।।
क्योंकि हे कमलनेत्र[1] ! मैंने आपसे भूतों की उत्पत्ति और प्रलय विस्तारपूर्वक सुने हैं तथा आपकी अविनाशी महिमा भी सुनी है ।।2।।
For, Krishna, I have heard from you in detail an account of the evolution and dissolution of being, and also your immortal glory. (2)
हि = क्योंकि; कमलपत्राक्ष = हे कमलनेत्र; मया = मैंने; भूतानाम् = भूतोंकी; भवाप्ययौ = उत्पत्ति और प्रलय; त्वत्त: = आपसे; विस्तरश: = विस्तारपूर्वक; श्रुतौ = सुने हैं; च = तथा(आपका); अव्ययम् = अविनाशी; महात्म्यम् = प्रभाव; अपि = भी(सुना है)
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55