गीता 11:38

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गीता अध्याय-11 श्लोक-38 / Gita Chapter-11 Verse-38


त्वामादिदेव: पुरुष: पुराण
स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम
त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।।



आप आदि देव और सनातन पुरुष हैं, आप इस जगत् के परम आश्रय और जानने वाले तथा जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्त रूप[1] ! आपसे यह सब जगत् व्याप्त अर्थात् परिपूर्ण है ।।38।।

You are the primal deity, the most ancient person; you are the ultimate resort of this universe. You are both the knower and the knowable, and the highest abode. It is you who pervade the universe, assuming endless forms. (38)


त्वम् = आप; पुराण: = सनातन; त्वम् = आप; विश्वस्य = जगत् के; निधानम् = आश्रय; वेत्ता = जाननेवाले(तथा); वेद्यम् = जाननेयोग्य; असि = हैं; त्वया = आपसे(यह सब); विश्वम् = जगत्; ततम् = व्याप्त अर्थात् परिपूर्ण है



अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अनन्त रूप, मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।

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