गीता 17:3

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 12:45, 6 January 2013 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

गीता अध्याय-17 श्लोक-3 / Gita Chapter-17 Verse-3


सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत ।
श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्ध: स एव स: ।।3।।



हे भारत[1] ! सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके अन्त:करण के अनुरूप होती है। यह पुरुष श्रद्धामय है, इसलिये जो पुरुष जैसी श्रद्धा वाला है वह स्वयं भी वही है ।।3।।

The faith of all men conforms to their mental constitution, Arjuna. This man consists of faith; whatever the nature of his faith, he is verily that.(3)


भारत = हे भारत ; श्रद्धा = श्रद्धा ; सत्त्वानुरूपा = अन्त:करण के अनुरूप ; भवति = होती है (तथा) ; अयम् = यह ; पुरुष: = पुरुष ; श्रद्धामय: = श्रद्धामय है ; सर्वस्य = सभी मनुष्यों की ; सर्वस्य = सभी मनुष्यों की ; (अत:) = इसलिये ; य: = जो पुरुष ; यच्छ्द्ध: = जैसी श्रद्धावाला है ; स: = वह स्वयम् ; एव = भी ; स: = वही है



अध्याय सतरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-17

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः