महाभारत युद्ध ग्यारहवाँ दिन

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 11:48, 14 January 2016 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) ('पितामह भीष्म के शर-शैय्या पर लेटने के बाद ग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

पितामह भीष्म के शर-शैय्या पर लेटने के बाद ग्यारहवें दिन के युद्ध में कर्ण के कहने पर गुरु द्रोण कौरव सेना के सेनापति बनाये गए।

  • द्रोणाचार्य के सेनापतित्व में दुर्योधन, दु:शासन, जयद्रथ, कृतवर्मा, कृपाचार्य, अश्वत्थामा और कर्ण अपना रणकौशल दिखा रहे थे।
  • पांडव सेना में सबसे आगे अर्जुन थे। अर्जुन को देखकर त्रिगर्तराज सुशर्मा आगे बढ़ा। अर्जुन ने सात्यकि को बुलाकर कहा कि- "आचार्य द्रोण की पूर्व रचना युधिष्ठिर को पकड़ने के लिए की गई है। तुम सावधान रहना। हमारी सेना का सेनापतित्व धृष्टद्युम्न कर रहे हैं, इससे आचार्य द्रोण डरे हुए हैं।"
  • सुशर्मा और संसप्तकों ने तेज़ी से आगे बढ़कर अर्जुन को चुनौती दी। अर्जुन ने आचार्य द्रोण को नमस्कार करने के लिए दो तीर छोड़े। आचार्य ने अपने शिष्य को आशीर्वाद दिया।
  • शल्य ने भीम को रोका, कर्ण सात्यकि से जूझ पड़े तथा शकुनि ने सहदेव को ललकारा।
  • युधिष्ठिर के साथ केवल नकुल रह गए थे। तभी यह मिथ्या समाचार उड़ा कि युधिष्ठिर पकड़े गए। धर्मराज के पकड़े जाने का समाचार सुनकर अर्जुन तेज़ी से युधिष्ठिर के पास पहुँचे। अर्जुन ने देखा युधिष्ठिर सुरक्षित हैं। अर्जुन के आते ही आचार्य द्रोण ने युधिष्ठिर को पकड़ने की आशा छोड़ दी।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः