दुर्योधन का गर्व हरण

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पाँचों पांडव द्रौपदी के साथ अपना जीवन जब वन में व्यतीत कर रहे थे, तभी दुर्योधन और शकुनि उनका अहित करने की योजना बनाते हैं और अपनी रानियों के साथ वन की ओर प्रस्थान करते हैं।

दुर्योधन की योजना

वन में पांडवों को नीचा दिखाने के लिए दुर्योधन ने एक योजना बनाई। कर्ण, शकुनि आदि के साथ अपनी रानियों को लेकर वह वन में पहुँचा। एक दिन दुर्योधन की इच्छा रानियों को लेकर सरोवर में स्नान करने की हुई। सरोवर के तट पर गंधर्वों का राजा चित्रसेन ठहरा हुआ था। दुर्योधन ने उस ओर की जमीन साफ करने के लिए अपने आदमियों को भेजा, जिन्हें चित्रसेन ने धमकाकर भगा दिया। दुर्योधन ने सैनिक भेजे, पर चित्रसेन ने उन्हें भी भगा दिया।

कौरवों का गंधर्वो सें युद्ध

कर्ण और शकुनि को साथ लेकर दुर्योधन गंधर्वों के सामने आ डटा। चित्रसेन उस समय स्नान कर रहा था। उसने कौरवों की सेना पर बाण-वर्षा शुरू कर दी। फिर सम्मोहन अस्त्र का प्रयोग किया, कर्ण का रथ काट दिया, दुर्योधन को पाश में बाँध दिया और कौरवों की रानियों को कैद करके स्वर्ग ले चला। रानियों ने भीम, अर्जुन युधिष्ठिर को सहायता के लिए पुकारा। इसी समय दुर्योधन के मंत्री ने भी आकर युधिष्ठिर से कौरवों की विपत्ति का वर्णन किया तथा सहायता की प्रार्थना की।

अर्जुन का चित्रसेन सें युद्ध

भीम तो प्रसन्न थे पर युधिष्ठिर ने कहा कि यह हमारी प्रतिष्ठा का प्रश्न है। उन्हीं के कहने पर भीम और अर्जुन चित्रसेन से भिड़ गए तथा महाकर्षण अस्त्र द्वारा चित्रसेन को आकाश से नीचे उतरने पर विवश किया। भीम ने महिलाओं के साथ दुर्योधन को रथ से उतार लिया। चित्रसेन और अर्जुन मित्रवत् मिले। दुर्योधन बहुत लज्जित था। उसने धर्मराज को प्रणाम किया तथा अपनी राजधानी लौट आया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 150 |


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