गीता 1:40: Difference between revisions

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Latest revision as of 13:22, 3 January 2013

गीता अध्याय-1 श्लोक-40 / Gita Chapter-1 Verse-40

प्रसंग-


इस प्रकार जब समस्त कुल में पाप फैल जाता है तब क्या होता है, अर्जुन[1] अब उसे बतलाते हैं –


कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्मा: सनातना:।
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत ।।40।।



कुल के नाश से सनातन कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं, धर्म के नाश हो जाने पर सम्पूर्ण कुल में पाप भी बहुत फैल जाता है ।।40।।

Age long family traditions disappear with the destruction of a family, and virtue having been lost, vice takes hold of the entire race.


कुलक्षये =कुल के नाश होने से; सनातना: = सनातन; कुलधर्मा: = कुलधर्म; प्रणश्यन्ति = नष्ट हो जाते हैं; नष्टे =नाश होने से; कृत्स्त्रम् = संपूर्ण; कुलम् =कुल को; अधर्म: = पाप; उत = भी; अभिभवति = बहुत दबा लेता है।



अध्याय एक श्लोक संख्या
Verses- Chapter-1

1 | 2 | 3 | 4, 5, 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17, 18 | 19 | 20, 21 | 22 | 23 | 24, 25 | 26 | 27 | 28, 29 | 30 | 31 | 32 | 33, 34 | 35 | 36 | 37 | 38, 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे। अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वह द्रोणाचार्य का सबसे प्रिय शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला भी वही था।

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