गीता 2:22: Difference between revisions
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इस प्रकार एक शरीर से दूसरे शरीर के प्राप्त होने में शोक करना अनचित सिद्ध करके, अब भगवान् आत्मा का स्वरूप दुर्विज्ञेय होने के कारण पुन: तीन | इस प्रकार एक शरीर से दूसरे शरीर के प्राप्त होने में शोक करना अनचित सिद्ध करके, अब भगवान् [[आत्मा]] का स्वरूप दुर्विज्ञेय होने के कारण पुन: तीन [[श्लोक|श्लोकों]] द्वारा प्रकारान्तर से उसकी नित्यता, निराकरता और निर्विकारता का प्रतिपादन करते हुए उसके विनाश की आशंका से शोक करना अनुचित सिद्ध करते हैं। | ||
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==संबंधित लेख== | |||
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Latest revision as of 06:43, 4 January 2013
गीता अध्याय-2 श्लोक-22 / Gita Chapter-2 Verse-22
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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