गीता 2:55: Difference between revisions
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स्थित प्रज्ञ के विषय में अर्जुन ने चार बातें पूछी हैं, उनमें से पहला पश्न इतना व्यापक है कि उसके बाद के तीनों प्रश्न उसमें अन्तर्भाव हो जाता | स्थित प्रज्ञ के विषय में अर्जुन ने चार बातें पूछी हैं, उनमें से पहला पश्न इतना व्यापक है कि उसके बाद के तीनों प्रश्न उसमें अन्तर्भाव हो जाता है। इस दृष्टि से तो अध्याय की समाप्ति पर्यन्त उस एक ही प्रश्न का उत्तर है, पर अन्य तीन प्रश्नों का भेद समझाने के लिये ऐसा समझना चाहिये कि अब दो श्लोकों में 'स्थितप्रज्ञ कैसे बोलता है' इस दूसरे प्रश्न का उत्तर दिया जाता है- | ||
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हे < | हे [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ! जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भली भाँति त्याग देता है और [[आत्मा]] से आत्मा में ही सन्तुष्ट रहता है, उस काल में स्थित प्रज्ञ कहा जाता है ।।55।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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Latest revision as of 08:44, 4 January 2013
गीता अध्याय-2 श्लोक-55 / Gita Chapter-2 Verse-55
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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