गीता 5:8-9: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
m (Text replace - "<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>" to "<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>") |
No edit summary |
||
(2 intermediate revisions by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<table class="gita" width="100%" align="left"> | <table class="gita" width="100%" align="left"> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 9: | Line 8: | ||
'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
---- | ---- | ||
इस प्रकार सांख्ययोगी के साधन का स्परूप बतलाकर अब दसवें और ग्यारवें श्लोकों में कर्मयोगियों के साधन का फलसहित स्वरूप बतलाते हैं- | इस प्रकार सांख्ययोगी के साधन का स्परूप बतलाकर अब दसवें और ग्यारवें [[श्लोक|श्लोकों]] में कर्मयोगियों के साधन का फलसहित स्वरूप बतलाते हैं- | ||
---- | ---- | ||
<div align="center"> | <div align="center"> | ||
Line 25: | Line 24: | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
तत्त्व को जानने वाला सांख्य योगी तो देखता हुआ, सुनता हुआ, स्पर्श करता हुआ, गमन करता हुआ, सोता हुआ, श्वास लेता हुआ, बोलता हुआ, त्यागता हुआ, ग्रहण करता हुआ तथा आँखों को खोलता और मूँदता हुआ भी सब [[इन्द्रियाँ]] अपने-अपने अर्थों में बरत रही हैं- इस प्रकार समझकर नि:सन्देह ऐसा माने कि मैं कुछ भी नहीं करता हूँ ।।8-9।। | |||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
Line 36: | Line 35: | ||
|- | |- | ||
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | | style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | ||
तत्ववित् = | तत्ववित् = तत्त्व को जानने वाला; युक्त: सांख्ययोगी तो; पश्चन् = देखता हुआ; श्रृण्वन् = सुनता हुआ; स्पृशन् = स्पर्श करता हुआ; जिघ्रन् = सूंघता हुआ; अश्नन् = भोजन करता हुआ; गच्छत् = गमन करता हुआ; स्वपन् = सोता हुआ; श्वसन् = श्वास लेता हुआ; प्रलपन् = बोलता हुआ; विसृजन् = त्यागता हुआ; गृहृन् = ग्रहण करता हुआ (तथा ); उन्मिषन् = आंखों को खोलता (और);निमिषन् = मीचता हुआ; इन्द्रियार्थेंषु = अपने अपने अर्थों में; वर्तन्ते =बर्त रही हैं; धारयन् = समझता हुआ; एवं = नि:सन्देह; इति = ऐसे; मन्येत = माने कि(मैं); किंचित् =कुछ भी; करोमि = करता हूं | ||
|- | |- | ||
|} | |} | ||
Line 60: | Line 59: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td> | <td> | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | |||
==संबंधित लेख== | |||
{{गीता2}} | {{गीता2}} | ||
</td> | </td> |
Latest revision as of 13:31, 4 January 2013
गीता अध्याय-5 श्लोक-8,9 / Gita Chapter-5 Verse-8,9
|
||||
|
||||
|
||||
|
||||
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
||||