गीता 5:24: Difference between revisions

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इस प्रकार जो परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त हो गये हैं, उन पुरुषों के लक्षण दो [[श्लोक|श्लोकों]] में बतलाते हैं-  
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जो पुरुष अन्तरात्मा में ही सुखवाला है, आत्मा में ही रमण करने वाला है तथा जो आत्मा में ही ज्ञान वाला है, वह सच्चिदानन्दघन परब्रह्म  परमात्मा के साथ एकीभाव को प्राप्त सांख्ययोगी शान्त ब्रह्म को प्राप्त होता है ।।24।।
जो पुरुष अन्तरात्मा में ही सुखवाला है, [[आत्मा]] में ही रमण करने वाला है तथा जो आत्मा में ही ज्ञान वाला है, वह सच्चिदानन्दघन परब्रह्म  परमात्मा के साथ एकीभाव को प्राप्त सांख्ययोगी शान्त ब्रह्म को प्राप्त होता है ।।24।।


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==संबंधित लेख==
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Latest revision as of 13:50, 4 January 2013

गीता अध्याय-5 श्लोक-24 / Gita Chapter-5 Verse-24

प्रसंग-


इस प्रकार जो परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त हो गये हैं, उन पुरुषों के लक्षण दो श्लोकों में बतलाते हैं-


योऽन्त: सुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव य: ।
स योगी ब्रह्रानिर्वाणां ब्रह्राभूतोऽधिगच्छति ।।24।।



जो पुरुष अन्तरात्मा में ही सुखवाला है, आत्मा में ही रमण करने वाला है तथा जो आत्मा में ही ज्ञान वाला है, वह सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमात्मा के साथ एकीभाव को प्राप्त सांख्ययोगी शान्त ब्रह्म को प्राप्त होता है ।।24।।

He who is happy within himself, enjoys within himself the delight of the soul, and even so is illumined by the inner light light of the soul, such a yogi sankhyayogi identified with Brahma attains Brahma, who is all peace. (24)


य: =जो पुरुष; एव = निश्चय करके; अन्त:सुख: = अन्तर आत्मा में ही सुखवाला है: अन्तराराम: = आत्मा में ही आराम वाला है; य: = जो; अन्तर्ज्योंति: = आत्मा में ही ज्ञान वाला है: ब्रह्मभूत: = सच्चिदानन्द धन परब्रह्म परमात्मा के साथ एकीभाव हुआ; योगी = सांख्ययोगी; ब्रह्मनिर्वाणम् = शान्त ब्रह्म को; अधिगच्छति = प्राप्त होता है।



अध्याय पाँच श्लोक संख्या
Verses- Chapter-5

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8, 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 ,28 | 29

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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