गीता 6:39: Difference between revisions
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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< | [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ने यह बात पूछी थी कि वह योग से विचलित हुआ साधक उभय भ्रष्ट होकर नष्ट तो नहीं हो जाता? भगवान् अब उसका उत्तर देते हैं- | ||
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हे < | हे [[श्रीकृष्ण]]<ref>'गीता' कृष्ण द्वारा [[अर्जुन]] को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे [[भारत]] में किसी न किसी रूप में की जाती है।</ref> ! मेरे इस संशय को सम्पूर्ण रूप से छेदन करने के लिये आप ही योग्य हैं, क्योंकि आपके सिवा दूसरा इस संशय का छेदन करने वाला मिलना सम्भव नहीं है ।।39।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | |||
==संबंधित लेख== | |||
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Latest revision as of 06:47, 5 January 2013
गीता अध्याय-6 श्लोक-39 / Gita Chapter-6 Verse-39
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख |
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