गीता 6:46: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - " मे " to " में ")
No edit summary
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 1: Line 1:
<table class="gita" width="100%" align="left">
<table class="gita" width="100%" align="left">
<tr>
<tr>
Line 9: Line 8:
'''प्रसंग-'''
'''प्रसंग-'''
----
----
पूर्व श्लोक में योगी को सर्वश्रेष्ठ बतलाकर भगवान् ने <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला वो ही था।
पूर्व श्लोक में योगी को सर्वश्रेष्ठ बतलाकर भगवान् ने [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> को योगी बनने के लिये कहा। किंतु ज्ञानयोग, ध्यानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग आदि साधनों में से अर्जुन को कौन-सा साधन करना चाहिये? इस बात का स्पष्टीकरण नहीं किया। अत: अब भगवान् अपने में अनन्य प्रेम करने वाले भक्त योगी की प्रशंसा करते हुए अर्जुन को अपनी ओर आकर्षित करते हैं-
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> को योगी बनने के लिये कहा । किंतु ज्ञानयोग, ध्यानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग आदि साधनों में से अर्जुन को कौन-सा साधन करना चाहिये ? इस बात का स्पष्टीकरण नहीं किया । अत: अब भगवान् अपने में अनन्य प्रेम करने वाले भक्त योगी की प्रशंसा करते हुए अर्जुन को अपनी ओर आकर्षित करते हैं-
----
----
<div align="center">
<div align="center">
Line 26: Line 24:
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|


योगी तपस्वियों से श्रेष्ठ है, शास्त्रज्ञानियों से भी श्रेष्ठ माना गया है और सकामकर्म करने वालों से भी योगी श्रेष्ठ है; इससे हे अर्जुन ! तू योगी हो ।।46।।
योगी तपस्वियों से श्रेष्ठ है, शास्त्रज्ञानियों से भी श्रेष्ठ माना गया है और सकामकर्म करने वालों से भी योगी श्रेष्ठ है; इससे हे [[अर्जुन]] ! तू योगी हो ।।46।।


| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
Line 61: Line 59:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{गीता2}}
{{गीता2}}
</td>
</td>

Latest revision as of 07:01, 5 January 2013

गीता अध्याय-6 श्लोक-46 / Gita Chapter-6 Verse-46

प्रसंग-


पूर्व श्लोक में योगी को सर्वश्रेष्ठ बतलाकर भगवान् ने अर्जुन[1] को योगी बनने के लिये कहा। किंतु ज्ञानयोग, ध्यानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग आदि साधनों में से अर्जुन को कौन-सा साधन करना चाहिये? इस बात का स्पष्टीकरण नहीं किया। अत: अब भगवान् अपने में अनन्य प्रेम करने वाले भक्त योगी की प्रशंसा करते हुए अर्जुन को अपनी ओर आकर्षित करते हैं-


तपस्विभ्योऽधिको योगी
ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिक: ।
कर्मिभ्यश्चाधिको योगी
तस्माद्योगी भवार्जुन ।।46।।



योगी तपस्वियों से श्रेष्ठ है, शास्त्रज्ञानियों से भी श्रेष्ठ माना गया है और सकामकर्म करने वालों से भी योगी श्रेष्ठ है; इससे हे अर्जुन ! तू योगी हो ।।46।।

The yogi is superior to the ascetics; he is regarded as superior even to those versed in sacred lore. The yogi is also superior to those who perform action with some interested motive. Therefore, Arjuna, do you become a yogi..(46)


योगी = योगी ; तपस्विभ्य: = तपस्वियों से ; अधकि: = श्रेष्ठ है ; च = और ; ज्ञानिभ्य: = शास्त्र के ज्ञान वालों से ; अपि = भी ; अधकि: = श्रेष्ठ ; मत: = माना गया है (तथा) ; कर्मिभ्य: = सकाम कर्म करने वालों से (भी) ; योगी = योगी ; अधकि: = श्रेष्ठ है ; तस्मात् = इससे ; अर्जुन = हे अर्जुन (तूं) ; योगी = योगी ; भव = हो ;



अध्याय छ: श्लोक संख्या
Verses- Chapter-6

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

संबंधित लेख