गीता 7:13: Difference between revisions

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Latest revision as of 08:01, 5 January 2013

गीता अध्याय-7 श्लोक-13 / Gita Chapter-7 Verse-13

प्रसंग-


भगवान् ने सारे जगत् को त्रिगुणमय भावों से मोहित बतलाया। इस बात को सुनकर अर्जुन[1] को यह जानने की इच्छा हुई कि फिर इससे छूटने का कोई उपाय है या नहीं? अन्तर्यामी दयामय भगवान् इस बात को समझकर अब अपनी माया को दुस्तर बतलाते हुए उसे तरने का उपाय सूचित कर रहे हैं-


त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभि: सर्वमिदं जगत् ।
मोहितं नाभिजानाति मामेभ्य: परमव्ययम् ।।13।।



गुणों के कार्यरूप सात्विक, राजस और तामस– इन तीनों प्रकार के भावों से यह सब संसार प्राणि समुदाय मोहित हो रहा है, इसीलिये इन तीनों गुणों से परे मुझ अविनाशी को नहीं जानता ।।13।।

Deluded by the three modes [goodness, passion and ignorance], the whole world does not know Me who am above the modes and inexhaustible (13)


गुणमयै: = गुणों के कार्यरूप (सात्वकि, राजस और तामस); एभि: = इन; त्रिभि: = तीनों प्रकार के; भावै: =भावों से; इदम् =यह; सर्वम् = सब; जगत् = संसार; मोहितम् = मोहित हो रहा है(इसलिये); एभ्य: = इन तीनों गुणों से; परम् = परे; माम् = मुझ; अव्ययम् = अविनाशी को;न अभिजानाति = तत्त्व से नहीं जानता



अध्याय सात श्लोक संख्या
Verses- Chapter-7

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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