गीता 8:21: Difference between revisions
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आठवें और दसवें श्लोकों में अधियज्ञ की उपासना का फल परम दिव्य पुरुष की प्राप्ति, तेरहवें श्लोक में परम अक्षर निर्गुण ब्रह्रा की उपासना का फल परमगति की प्राप्ति और चौदहवें श्लोक में सगुण-साकार भगवान् < | आठवें और दसवें श्लोकों में अधियज्ञ की उपासना का फल परम दिव्य पुरुष की प्राप्ति, तेरहवें [[श्लोक]] में परम अक्षर निर्गुण ब्रह्रा की उपासना का फल परमगति की प्राप्ति और चौदहवें श्लोक में सगुण-साकार भगवान् [[श्रीकृष्ण]]<ref>'गीता' कृष्ण द्वारा [[अर्जुन]] को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे [[भारत]] में किसी न किसी रूप में की जाती है।</ref> की उपासना का फल भगवान् की प्राप्ति बतलाया गया है। इससे तीनों में किसी प्रकार के भेद का भ्रम न हो जाये, इस उद्देश्य से अब सबकी एकता का प्रतिपादन करते हुए उनकी प्राप्ति के बाद [[पुनर्जन्म]] का अभाव दिखलाते हैं- | ||
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Latest revision as of 09:28, 5 January 2013
गीता अध्याय-8 श्लोक-21 / Gita Chapter-8 Verse-21
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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