गीता 9:7: Difference between revisions

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विज्ञान सहित ज्ञान का वर्णन करते हुए भगवान् ने यहाँ तक प्रभाव सहित अपने निराकार स्वरूप का तत्त्व समझाने के लिये उसकी व्यापकता, असंगता और निर्विकारता का प्रतिपादन किया। अब अपने भूतभावन स्वरूप का स्पष्टीकरण करते हुए सृष्टरचनादि कर्मों का तत्त्व समझाने के लिये पहले दो [[श्लोक|श्लोकों]] द्वारा कल्पों में सब भूतों का प्रलय और कल्पों के आदि में उनकी उत्पत्ति का प्रकार बतलाते हैं-
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हे <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
हे [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ! कल्पों के अन्त में सब भूत मेरी प्रकृति को प्राप्त होते हैं अर्थात् प्रकृति में लीन होते हैं और कल्पों के आदि में उनको मैं फिर रचता हूँ ।।7।।  
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Latest revision as of 10:11, 5 January 2013

गीता अध्याय-9 श्लोक-7 / Gita Chapter-9 Verse-7

प्रसंग-


विज्ञान सहित ज्ञान का वर्णन करते हुए भगवान् ने यहाँ तक प्रभाव सहित अपने निराकार स्वरूप का तत्त्व समझाने के लिये उसकी व्यापकता, असंगता और निर्विकारता का प्रतिपादन किया। अब अपने भूतभावन स्वरूप का स्पष्टीकरण करते हुए सृष्टरचनादि कर्मों का तत्त्व समझाने के लिये पहले दो श्लोकों द्वारा कल्पों में सब भूतों का प्रलय और कल्पों के आदि में उनकी उत्पत्ति का प्रकार बतलाते हैं-


सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम् ।
कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम् ।।7।।



हे अर्जुन[1] ! कल्पों के अन्त में सब भूत मेरी प्रकृति को प्राप्त होते हैं अर्थात् प्रकृति में लीन होते हैं और कल्पों के आदि में उनको मैं फिर रचता हूँ ।।7।।

Arjuna, during the final dissolution all beings enter my nature (the prime cause) , and at the beginning of creation, I send them forth again. (7)


कौन्तेय = हे अर्जुन ; कल्पक्षये = कल्पके अन्त में ; सर्वभूतानि = सब भूत ; मामिकाम् = मेरी ; प्रकृतिम् = प्रकृति को ; यान्ति = प्राप्त होते हैं अर्थात् प्रकृति में लय होते हैं ; कल्पादौ = कल्पके आदि में ; तानि = उनको ; अहम् = मैं ; पुन: = मैं ; पुन: = फिर ; विसृजामि = रचता हूं ;



अध्याय नौ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-9

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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