Difference between revisions of "गीता 10:1"
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इस अध्याय में प्रधान रूप से भगवान् की विभूतियों का ही वर्णन है, इसलिये इस अध्याय का नाम 'विभूति योग' रखा गया है । | इस अध्याय में प्रधान रूप से भगवान् की विभूतियों का ही वर्णन है, इसलिये इस अध्याय का नाम 'विभूति योग' रखा गया है । | ||
− | प्रसंग- सातवें अध्याय से लेकर नवें अध्याय तक विज्ञान सहित ज्ञान को जो वर्णन किया गया उसके बहुत गंभीर हो जाने के कारण अब पुन: उसी विषय को दूसरे प्रकार से भली-भाँति समझाने के लिये दसवें अध्याय का आरम्भ किया जाता | + | प्रसंग- सातवें अध्याय से लेकर नवें अध्याय तक विज्ञान सहित ज्ञान को जो वर्णन किया गया उसके बहुत गंभीर हो जाने के कारण अब पुन: उसी विषय को दूसरे प्रकार से भली-भाँति समझाने के लिये दसवें अध्याय का आरम्भ किया जाता है। यहाँ पहले [[श्लोक]] में भगवान् पूर्वोक्त विषय का ही पुन: वर्णन करने की प्रतिज्ञा करते हैं- |
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<div align="center"> | <div align="center"> | ||
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'''श्रीभगवान् बोले –''' | '''श्रीभगवान् बोले –''' | ||
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− | हे < | + | हे महाबाहो<ref>पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी [[अर्जुन]] के सम्बोधन है।</ref> ! फिर भी मेरे परम रहस्य और प्रभावयुक्त वचन को सुन, जिसे मैं तुझ अतिशय प्रेम रखने वाले के लिये हित की इच्छा से कहूँगा ।।1।। |
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
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− | महाबाहो = हे महाबाहो; भूय: = फिर; परमम् = परम(रहस्य और प्रभावयुक्त); वच: = वचन; श्रृणु = श्रवण कर; यत् = जो(कि); अहम् = मैं; प्रीयमाणाय = अतिशय प्रेम | + | महाबाहो = हे महाबाहो; भूय: = फिर; परमम् = परम(रहस्य और प्रभावयुक्त); वच: = वचन; श्रृणु = श्रवण कर; यत् = जो(कि); अहम् = मैं; प्रीयमाणाय = अतिशय प्रेम रखने वाले के लिये; हितकाम्यया = हित की इच्छा से; वक्ष्यामि = कहूंगा; |
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− | {{ | + | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
+ | <references/> | ||
+ | ==संबंधित लेख== | ||
+ | {{गीता2}} | ||
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− | {{ | + | {{महाभारत}} |
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Latest revision as of 11:36, 5 January 2013
gita adhyay-10 shlok-1 / Gita Chapter-10 Verse-1
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tika tippani aur sandarbhsanbandhit lekh |
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