गीता 11:1: Difference between revisions
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'''एकादशोऽध्याय प्रसंग-''' | '''एकादशोऽध्याय प्रसंग-''' | ||
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इस अध्याय में < | इस अध्याय में [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> के प्रार्थना करने पर भगवान् ने उनको अपने विश्व रूप के दर्शन करवाये हैं। अध्याय के अधिकांश में केवल विश्व रूप और उनके स्तवन का ही प्रकरण है, इसलिये इस अध्याय का नाम 'विश्व रूप दर्शन योग' रखा गया है । | ||
'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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ग्यारहवें अध्याय के आरम्भ में पहले चार श्लोकों में भगवान् की और उनके उपदेश की प्रशंसा करते हुए अर्जुन उनसे विश्व रूप का दर्शन कराने के लिय प्रार्थना करते हैं- | ग्यारहवें अध्याय के आरम्भ में पहले चार [[श्लोक|श्लोकों]] में भगवान् की और उनके उपदेश की प्रशंसा करते हुए [[अर्जुन]] उनसे विश्व रूप का दर्शन कराने के लिय प्रार्थना करते हैं- | ||
'''अर्जुन उवाच-''' | '''अर्जुन उवाच-''' | ||
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==संबंधित लेख== | |||
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Latest revision as of 05:42, 6 January 2013
गीता अध्याय-11 श्लोक-1 / Gita Chapter-11 Verse-1
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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