गीता 13:5: Difference between revisions
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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इस प्रकार ऋषि, < | इस प्रकार ऋषि, [[वेद]]<ref>वेद [[हिन्दू धर्म]] के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई।</ref> और [[ब्रह्मसूत्र]] का प्रमाण देकर अब भगवान् तीसरे [[श्लोक]] में 'यत्' पद से कहे हुए 'क्षेत्र' का और 'यद्वकारि' पद से कहे हुए उसके विकारों का अगले दो श्लोकों में वर्णन करते हैं- | ||
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पांच महाभूत, अहंकार, बुद्धि और मूल प्रकृति भी तथा दस इन्द्रियाँ, एक मन और पाँच इन्द्रियाँ के विषय अर्थात् शब्द, स्पर्श , रूप, रस और गन्ध | पांच महाभूत, अहंकार, बुद्धि और मूल प्रकृति भी तथा दस इन्द्रियाँ, एक मन और पाँच [[इन्द्रियाँ]] के विषय अर्थात् शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध ।।15।। | ||
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==संबंधित लेख== | |||
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Latest revision as of 09:16, 6 January 2013
गीता अध्याय-13 श्लोक-5 / Gita Chapter-13 Verse-5
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख |
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