गीता 13:26: Difference between revisions

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हे <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! जितने भी स्थावर-जंगम प्राणी उत्पन्न होते हैं, उन सबको तू क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के संयोग से ही उत्पन्न जान ।।26।।  
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Latest revision as of 09:47, 6 January 2013

गीता अध्याय-13 श्लोक-26 / Gita Chapter-13 Verse-26

प्रसंग-


इस प्रकार परमात्म सम्बन्धी तत्त्व ज्ञान के भिन्न-भिन्न साधनों का प्रतिपादन करके अब तीसरे श्लोक में जो 'यादृक्' पद से क्षेत्र के स्वभाव को सुनने के लिये कहा था, उसके अनुसार भगवान् दो श्लोकों द्वारा उस क्षेत्र को उत्पत्ति विनाशशील बतलाकर उसके स्वभाव का वर्णन करते हुए आत्मा के यथार्थ तत्त्व को जानने की प्रशंसा करते हैं-


यावत्संजायते किंचित्सत्त्वं स्थावर जंगमम् ।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात्तद्विद्धि भरतर्षभ ।।26।।



हे अर्जुन[1] ! जितने भी स्थावर-जंगम प्राणी उत्पन्न होते हैं, उन सबको तू क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के संयोग से ही उत्पन्न जान ।।26।।

Arjuna, whatsoever being, animate or inanimate, is born, know it as emanated from the union of ksetra (matter) and the ksetrajna (spirit). (26)


भरतर्षभ = हे अर्जुन ; यावत् = यावन्मात्र ; किंचित् = जो कुछ भी ; संजायते = उत्पन्न होती है ; तत् = उस संपूर्ण को (तूं) ; स्थावरजग्डमम् = स्थावर जग्डम ; सत्त्वम् = वस्तु ; क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात् = क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के संयोग से ही (उत्पन्न हुई) ; विद्धि = जान ;



अध्याय तेरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-13

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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