गीता 14:19: Difference between revisions

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गुणातीत होने के उपाय और गुणातीत अवस्था का फल अगले दो श्लोकों द्वारा बतलाया ।  
गुणातीत होने के उपाय और गुणातीत अवस्था का फल अगले दो [[श्लोक|श्लोकों]] द्वारा बतलाया ।  
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जिस समय द्रष्टा तीनों गुणों के अतिरिक्त अन्य किसी को कर्ता नहीं देखता और तीनों गुणों से अत्यन्त परे सच्चिदानन्दघन स्वरूप मुझ परमात्मा को तत्व से जानता है, उस समय वह मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है ।।19।।
जिस समय द्रष्टा तीनों गुणों के अतिरिक्त अन्य किसी को कर्ता नहीं देखता और तीनों गुणों से अत्यन्त परे सच्चिदानन्दघन स्वरूप मुझ परमात्मा को तत्त्व से जानता है, उस समय वह मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है ।।19।।


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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Latest revision as of 10:32, 6 January 2013

गीता अध्याय-14 श्लोक-19 / Gita Chapter-14 Verse-19

प्रसंग-


गुणातीत होने के उपाय और गुणातीत अवस्था का फल अगले दो श्लोकों द्वारा बतलाया ।


नान्यं गुणेभ्य: कर्तारं यदा द्रष्टानुपश्यति ।
गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मदूभावं सोऽधिगच्छति ।।19।।



जिस समय द्रष्टा तीनों गुणों के अतिरिक्त अन्य किसी को कर्ता नहीं देखता और तीनों गुणों से अत्यन्त परे सच्चिदानन्दघन स्वरूप मुझ परमात्मा को तत्त्व से जानता है, उस समय वह मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है ।।19।।

When the seer perceives no agent other than the three Gunas; and realizes Me, the suprem Spirit standing entirely beyond these Gunas, he enters into My Being.(19)


यदा = जिस काल में ; द्रष्टा ; अन्यम् = अन्य किसी को ; कर्तारम् = कर्ता ; न = नहीं ; अनपशयति = देखता है अर्थात् गुण ही गुणों में बर्तते हैं ऐसा देखता है ; च = और ; गुणेभ्य: = तीनों गुणों से ; गुणेभ्य: = तीनों गुणों के सिवाय ; परम् = अति परे सच्चिदानन्दघनस्वरूप मुझ परमात्मा को ; वेत्ति = तत्त्वसे जानता है ; (तदा) = उस काल में ; स: = वह पुरुष ; भभ्दावम् = मेरे स्वरूपको ; अधिगच्छति = प्राप्त होता है



अध्याय चौदह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-14

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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