गीता 14:22: Difference between revisions

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हे अर्जुन ! जो पुरुष सत्त्वगुण के कार्यरूप प्रकाश को और रजोगुण के कार्यरूप प्रवृत्ति को तथा तमोगुण के कार्यरूप मोह को भी न तो प्रवृत्त होने पर उनसे द्वेष करता है और न निवृत्त होने पर उनकी आकांक्षा करता है ।।22।।
हे [[अर्जुन]] ! जो पुरुष सत्त्वगुण के कार्यरूप प्रकाश को और रजोगुण के कार्यरूप प्रवृत्ति को तथा तमोगुण के कार्यरूप मोह को भी न तो प्रवृत्त होने पर उनसे द्वेष करता है और न निवृत्त होने पर उनकी आकांक्षा करता है ।।22।।
 
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Latest revision as of 10:34, 6 January 2013

गीता अध्याय-14 श्लोक-22 / Gita Chapter-14 Verse-22

प्रसंग-


इस प्रकार अर्जुन[1] के पूछने पर भगवान् उनके प्रश्नों में से 'लक्षण' और 'आचरण' विषयक दो प्रश्नों का उत्तर चार श्लोकों द्वारा देते हैं-


श्रीभगवानुवाच-
प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव ।
न द्वेष्टि संप्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति ।।22।।



श्रीभगवान् बोले-


हे अर्जुन ! जो पुरुष सत्त्वगुण के कार्यरूप प्रकाश को और रजोगुण के कार्यरूप प्रवृत्ति को तथा तमोगुण के कार्यरूप मोह को भी न तो प्रवृत्त होने पर उनसे द्वेष करता है और न निवृत्त होने पर उनकी आकांक्षा करता है ।।22।।

Shri Bhagavan said-


Arjuna, he who hates not light (which is born of Sattva) and activity (which is born of Rajas) and even stupor (which is born of Tamas), when prevalent, nor longs for them when they have ceased.(22)


पाण्डव = हे अर्जुन (जो पुरुष) ; प्रकाशम् = कार्यरूप प्रकाश को ; च = और ; प्रवृत्तिम् = रजोगुण के कार्यरूप प्रवृत्ति को ; द्वेष्टि = बुरा समझता है ; च = और ; न = न ; च = तथा ; मोहम् = तमोगुण के कार्यरूप मोहको ; एव = भी ; न = न (तो) ; संप्रवृत्तानि = प्रवृत्त होने पर ; निवृत्तानि = निवृत्त होने पर (उनकी) ; काक्ष्डति = आकाक्ष्डा करता है|



अध्याय चौदह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-14

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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