गीता 15:19: Difference between revisions

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हे <balloon title="पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।" style="color:green">भारत</balloon> ! जो ज्ञानी पुरुष मुझको इस प्रकार तत्व से पुरुषोत्तम जानता है, वह सर्वज्ञ पुरुष सब प्रकार से निरन्तर मुझ <balloon title="मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।" style="color:green">वासुदेव</balloon> परमेश्वर को ही भजता है ।।19।।  
हे भारत<ref>पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी [[अर्जुन]] के सम्बोधन है।</ref> ! जो ज्ञानी पुरुष मुझको इस प्रकार तत्त्व से पुरुषोत्तम जानता है, वह सर्वज्ञ पुरुष सब प्रकार से निरन्तर मुझ वासुदेव<ref>मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् [[कृष्ण]] का ही सम्बोधन है।</ref> परमेश्वर को ही भजता है ।।19।।  


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Latest revision as of 11:17, 6 January 2013

गीता अध्याय-15 श्लोक-19 / Gita Chapter-15 Verse-19

प्रसंग-


अब ऊपर कहे हुए प्रकार से भगवान् को पुरुषोत्तम समझने वाले पुरुष की महिमा और लक्षण बतलाते हैं-


यो मामेवमसंमूढ़ो जानाति पुरुषोत्तमम् ।
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ।।19।।



हे भारत[1] ! जो ज्ञानी पुरुष मुझको इस प्रकार तत्त्व से पुरुषोत्तम जानता है, वह सर्वज्ञ पुरुष सब प्रकार से निरन्तर मुझ वासुदेव[2] परमेश्वर को ही भजता है ।।19।।

Arjuna, the wise man who thus realizes Me as the Supreme Person,—knowing all, he constantly worship Me (the all-pervading Lord) with his whole being. (19)


भारत = हे भारत ; एवम् = इस प्रकार तत्त्व से ; य: = जो ; असंमूढ: = ज्ञानी पुरुष ; माम् = मेरे को ; पुरुषोत्तमम् = पुरुषोत्तम ; जानाति = जानता है ; स: = वह ; सर्ववित् = सर्वज्ञ पुरुष ; सर्वभावेन = सब प्रकार से निरन्तर ; माम् = मुझ वासुदेव परमेश्र्वर को ही ; भजति = भजता है ;



अध्याय पन्द्रह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-15

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।
  2. मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।

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